वो माँ ही है जो धूप से बचाकर हमें छाव देती है
हर गम को छुपाकर, खुशियाँ बाट देती है
ऐसे निभाती है जिमेदारियाँ, बच्चों में जान फूंक देती है
अपना अस्तित्व भूल, मातृत्व को जिंदगी मान लेती है।
मेरी भी माँ ऐसी ही है,,,
सबसे सुंदर परी जैसी है
विशाल हुदय वाली है
मेरे जीवनबगिया की माली है।
साया बन जाती है जब अकेली होती हूँ मैं
मुस्कान बन जाती है जब अकेली में रोती हूँ मै
देवकी, यशोदा से नहीं मिली, पर कान्हा बन जाती हूँ मैं
जब भी तेरी गोद मिले चैनसे सो जाती हूँ मैं।
धन्य है तू माँ, तेरी कोई उपमा नहीं इस जहाँ में
चुनकर काटें हटाये, फूल बिछा दिए राह में
छूट जाए दुनिया का साथ, तू बसाये रखना निग़ाह में
एक इल्तजा छोटीसी, रहना हरदम तेरी पनाह में।
रो.मधुबाला निकम
रोटरी क्लब ऑफ पेण